प्यार नहीं वासना
प्रेषक : लव बाईट्स
हाय ! मैं हूँ राहुल, चंडीगढ़ का रहने वाला एक आज़ाद ख्यालों वाला युवक। मेरी कहानी सिर्फ आप लोगों को उत्तेजित करने के लिए है, इसका मकसद अपनी सेक्स शक्ति का बखान करने के लिए नहीं है। सो, पढ़िए और मज़ा लीजिये।
चंडीगढ़ में हमारा लड़के-लड़कियों का ग्रुप होता था, जो हर रोज़ शाम को गेड़ी रूट पर मौज मस्ती करते थे। हमारे ग्रुप में सभी की जोड़ी बनी हुई थी। मेरी भी एक पार्टनर थी नेहा ! जो इतनी खूबसूरत तो नहीं थी, पर हमें कौन सा शादी करनी थी। शुरू शुरू में मैं उसे लेकर ग्रुप में घूमता था, धीरे धीरे हम लोग अकेले घूमने लगे। मैंने उसे पहले दिन ही कह दिया था कि मेरे साथ भावुक होने की कोई ज़रुरत नहीं, लेकिन कहीं न कहीं उसके मन में मुझे शादी के चक्कर में फ़ंसाने की बात थी।
धीरे धीरे हम लोग शाम को मेरी कार में 2-3 घंटे इधर उधर घूमने लगे। एक दिन मैंने मौका पा कर उसे चूम लिया। वो एकदम से घबरा गई पर उसे भी मज़ा आया। फिर हमारी मुलाकातों में चूमा-चाटी का दौर चलने लगा। हम सुनसान जगह पर गाड़ी पार्क करके पहले बातें करते, फिर धीरे-धीरे किस्सिंग शुरू हो जाती।
एक दिन मैंने उतेजना में आकर धीरे से अपना हाथ उसके मम्मे पर रख दिया। उसने हाथ वहीं पकड़ के नीचे कर दिया। मैंने चूमना चालू रखा, और दो मिनट बाद फिर से मम्मा दबा दिया। उसने फिर से मेरा हाथ हटाने की कोशिश की पर मैंने नहीं हटाया। उसने हार मान कर मज़ा लेना शुरू कर दिया। फिर मैंने उसके टॉप के अन्दर हाथ डाल कर ब्रा का हुक खुल दिया और फिर मैं जैसे जन्नत में पहुँच गया। एकदम गोरे गोरे माखन जैसे मम्मे देख कर मैं पागल होकर उन्हें अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। नेहा भी वासना की आग में अआह आआह्ह की आवाजें निकलने लगी, उसके निप्पल चूस चूस कर मैंने लाल कर दिए।
बस फिर क्या था, अब रोज़ का यही सिलसिला चलने लगा। मैं घंटों उसके मम्मे दबाता, उन्हें जी भर के चूसता। कुछ दिन यही खेल चला और मैं बीच बीच में उसे चेताता भी रहता कि यह सिर्फ अपनी दोस्ती है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। पर वो शायद किसी उम्मीद में मुझे आगे बढ़ने दे रही थी।
ऐसे ही एक दिन हम मोरनी हिल्स के रास्ते पर सुनसान सी जगह पर गाड़ी रोक कर प्यार करने लगे। मैंने झट से उसके मम्मों को दबाना, चूसना शुरू कर दिया। नेहा की साँसें तेज़ होने लगी। मैंने उसकी चूत के ऊपर हाथ फिराया और धीरे से उसकी जींस की जिप खोल के अन्दर चिकनी चूत पर ऊँगली फिराई। चूत एकदम से साफ़ और मखमली थी। मैंने अन्दर ऊँगली डाल के जैसे ही घुमाई, नेहा के मुँह से आआअयीईइ की आवाज़ निकली। उसकी चूत एकदम गीली थी। मैंने उसे ऐसे तड़पाना शुरू किया कि वो पागल हुई मुझसे लिपटी जा रही थी।
मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी जींस के ऊपर से अपने लौड़े पर रख दिया। नेहा ने झिझकते हुए उस पर हाथ फेरना शुरू किया। मैंने मौका देख कर जिप खोल के अपना सात इंच के लौड़े को बाहर निकाल कर उसके हाथ में दे दिया। उसका मुँह खुला का खुला ही रह गया। मैंने सर पकड़ा और झट से लौड़े को उसके मुँह में डाल दिया। नेहा ने हैरान होकर मुझे देखा, पर मैं कहाँ मानने वाला था। उसने धीरे धीरे सुपारे को चूसना शुरू किया और मैं जन्नत में !
दस मिनट लौड़े को चूसाने के बाद मैंने अपना रस उसके मुँह में ही छोड़ दिया। वो आधा घंटा सबसे हसीं लम्हे थे।
उसके बाद हमारा यह सिलसिला जारी रहा, मैं रोज़ उससे लौड़े को चुसवाता, शायद उससे भी मज़ा आता था।
फिर एक दिन मैंने उसके साथ अपने दिल्ली के टूर की सेट्टिंग की। मैं एक तरफ से दिल्ली पहुंचा, और वो अपने माँ बाप को बहाना बनाकर दिल्ली पहुँच गई। वहाँ मिलते ही हम दोनों ने एक होटल में कमरा ले लिया पति पत्नी बनकर।
कमरे में घुसते ही मैंने उसे बिस्तर पर गिराकर सारे कपड़े उतार फैंके। धीरे धीरे उसके मम्मों का सारा रस पी गया, निप्पल चूस चूस के लाल कर दिए।
मुझसे इंतज़ार नहीं हो रहा था, मैंने झट से अपना लण्ड उसके मुँह में दे दिया, वो मज़े से चूसने लगी।
अब मुझे इंतज़ार था उस चिकनी चूत का, जिसने मुझे इतना तड़पाया था। लौड़े को उसकी चूत के ऊपर रख कर जैसे ही मैंने धक्का लगाया, सीधा स्वर्ग में पहुँच गए हम दोनों ! फिर चुदाई का वो खेल शुरू हुआ कि दो दिन हमने न जाने कितनी बार चुदाई की, हम खुद भी नहीं जानते।
उसके बाद हम दोनों ने न जाने कितने मज़े एक साथ लूटे, कितनी बार चुदाई की, पर मैंने उससे एक बात साफ़ शब्दों में कह दी थी कि हमारी दोस्ती सिर्फ शारीरिक सुख तक सीमित है। फिर हम दोनों की शादियाँ हो गई और हम फिर कभी नहीं मिले पर वोह हसीं लम्हें आज भी आनंदित कर जाते हैं।
प्रेषक : लव बाईट्स
हाय ! मैं हूँ राहुल, चंडीगढ़ का रहने वाला एक आज़ाद ख्यालों वाला युवक। मेरी कहानी सिर्फ आप लोगों को उत्तेजित करने के लिए है, इसका मकसद अपनी सेक्स शक्ति का बखान करने के लिए नहीं है। सो, पढ़िए और मज़ा लीजिये।
चंडीगढ़ में हमारा लड़के-लड़कियों का ग्रुप होता था, जो हर रोज़ शाम को गेड़ी रूट पर मौज मस्ती करते थे। हमारे ग्रुप में सभी की जोड़ी बनी हुई थी। मेरी भी एक पार्टनर थी नेहा ! जो इतनी खूबसूरत तो नहीं थी, पर हमें कौन सा शादी करनी थी। शुरू शुरू में मैं उसे लेकर ग्रुप में घूमता था, धीरे धीरे हम लोग अकेले घूमने लगे। मैंने उसे पहले दिन ही कह दिया था कि मेरे साथ भावुक होने की कोई ज़रुरत नहीं, लेकिन कहीं न कहीं उसके मन में मुझे शादी के चक्कर में फ़ंसाने की बात थी।
धीरे धीरे हम लोग शाम को मेरी कार में 2-3 घंटे इधर उधर घूमने लगे। एक दिन मैंने मौका पा कर उसे चूम लिया। वो एकदम से घबरा गई पर उसे भी मज़ा आया। फिर हमारी मुलाकातों में चूमा-चाटी का दौर चलने लगा। हम सुनसान जगह पर गाड़ी पार्क करके पहले बातें करते, फिर धीरे-धीरे किस्सिंग शुरू हो जाती।
एक दिन मैंने उतेजना में आकर धीरे से अपना हाथ उसके मम्मे पर रख दिया। उसने हाथ वहीं पकड़ के नीचे कर दिया। मैंने चूमना चालू रखा, और दो मिनट बाद फिर से मम्मा दबा दिया। उसने फिर से मेरा हाथ हटाने की कोशिश की पर मैंने नहीं हटाया। उसने हार मान कर मज़ा लेना शुरू कर दिया। फिर मैंने उसके टॉप के अन्दर हाथ डाल कर ब्रा का हुक खुल दिया और फिर मैं जैसे जन्नत में पहुँच गया। एकदम गोरे गोरे माखन जैसे मम्मे देख कर मैं पागल होकर उन्हें अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। नेहा भी वासना की आग में अआह आआह्ह की आवाजें निकलने लगी, उसके निप्पल चूस चूस कर मैंने लाल कर दिए।
बस फिर क्या था, अब रोज़ का यही सिलसिला चलने लगा। मैं घंटों उसके मम्मे दबाता, उन्हें जी भर के चूसता। कुछ दिन यही खेल चला और मैं बीच बीच में उसे चेताता भी रहता कि यह सिर्फ अपनी दोस्ती है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। पर वो शायद किसी उम्मीद में मुझे आगे बढ़ने दे रही थी।
ऐसे ही एक दिन हम मोरनी हिल्स के रास्ते पर सुनसान सी जगह पर गाड़ी रोक कर प्यार करने लगे। मैंने झट से उसके मम्मों को दबाना, चूसना शुरू कर दिया। नेहा की साँसें तेज़ होने लगी। मैंने उसकी चूत के ऊपर हाथ फिराया और धीरे से उसकी जींस की जिप खोल के अन्दर चिकनी चूत पर ऊँगली फिराई। चूत एकदम से साफ़ और मखमली थी। मैंने अन्दर ऊँगली डाल के जैसे ही घुमाई, नेहा के मुँह से आआअयीईइ की आवाज़ निकली। उसकी चूत एकदम गीली थी। मैंने उसे ऐसे तड़पाना शुरू किया कि वो पागल हुई मुझसे लिपटी जा रही थी।
मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी जींस के ऊपर से अपने लौड़े पर रख दिया। नेहा ने झिझकते हुए उस पर हाथ फेरना शुरू किया। मैंने मौका देख कर जिप खोल के अपना सात इंच के लौड़े को बाहर निकाल कर उसके हाथ में दे दिया। उसका मुँह खुला का खुला ही रह गया। मैंने सर पकड़ा और झट से लौड़े को उसके मुँह में डाल दिया। नेहा ने हैरान होकर मुझे देखा, पर मैं कहाँ मानने वाला था। उसने धीरे धीरे सुपारे को चूसना शुरू किया और मैं जन्नत में !
दस मिनट लौड़े को चूसाने के बाद मैंने अपना रस उसके मुँह में ही छोड़ दिया। वो आधा घंटा सबसे हसीं लम्हे थे।
उसके बाद हमारा यह सिलसिला जारी रहा, मैं रोज़ उससे लौड़े को चुसवाता, शायद उससे भी मज़ा आता था।
फिर एक दिन मैंने उसके साथ अपने दिल्ली के टूर की सेट्टिंग की। मैं एक तरफ से दिल्ली पहुंचा, और वो अपने माँ बाप को बहाना बनाकर दिल्ली पहुँच गई। वहाँ मिलते ही हम दोनों ने एक होटल में कमरा ले लिया पति पत्नी बनकर।
कमरे में घुसते ही मैंने उसे बिस्तर पर गिराकर सारे कपड़े उतार फैंके। धीरे धीरे उसके मम्मों का सारा रस पी गया, निप्पल चूस चूस के लाल कर दिए।
मुझसे इंतज़ार नहीं हो रहा था, मैंने झट से अपना लण्ड उसके मुँह में दे दिया, वो मज़े से चूसने लगी।
अब मुझे इंतज़ार था उस चिकनी चूत का, जिसने मुझे इतना तड़पाया था। लौड़े को उसकी चूत के ऊपर रख कर जैसे ही मैंने धक्का लगाया, सीधा स्वर्ग में पहुँच गए हम दोनों ! फिर चुदाई का वो खेल शुरू हुआ कि दो दिन हमने न जाने कितनी बार चुदाई की, हम खुद भी नहीं जानते।
उसके बाद हम दोनों ने न जाने कितने मज़े एक साथ लूटे, कितनी बार चुदाई की, पर मैंने उससे एक बात साफ़ शब्दों में कह दी थी कि हमारी दोस्ती सिर्फ शारीरिक सुख तक सीमित है। फिर हम दोनों की शादियाँ हो गई और हम फिर कभी नहीं मिले पर वोह हसीं लम्हें आज भी आनंदित कर जाते हैं।
You have read this article Hindi Sex Stories /
Indian Sex Stories
with the title प्यार नहीं वासना. You can bookmark this page URL http://jadejurgensen.blogspot.com/2011/06/blog-post_6179.html. Thanks!